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शायद मैं भी
शायद मैं भी वही करता जो सब चाहते हैं तुमको देख कर
मैं भी तो आदमी ही हूं पर थोड़ा सम्मान से संयम से सोच कर
मैं मूलभूत प्रवृत्तियों को अपनी इंद्रियों को
संयमित अधिक नहीं रख सकता
मैं अपने मनोभावों को अधिक देर तक छिपा
नहीं रख सकता
मैं महात्मा नहीं मैं बुद्ध नहीं, मैं जिंदा हूं अपने पुरुषत्व के साथ
हां मैं निभाते आया हूं रिश्तों को संयम से अपने शैतानी विचारों को मारते हुए आया हूं
पर पुरुष किसी सुंदर स्त्री को प्रेम ना करे आकर्षित ना हो शारीरिक मानसिक रुप से
उचित नहीं है
और एक सच यह भी तो है आप आंखों से
भाव मन के पढ़ सकते हो फिर आपको भी
अधिक अंतरंग नहीं होना चाहिए
किसी की भी अधिक नजदीकियां उचित नहीं
होती हैं चाहे वो पुरुष या महिला हो
नदी में बहाव होता है वह अपने वेग में उसके
सम्पर्क में आने वाले को बहा ले ही जायेगी
वासना भी वेगमयी बहाव सी होती है



© mast.fakir chal akela