...

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बचपन
ढूंढू मै तुम्हे कहा.....
मेरी निगाहों में, सड़को कि उन राहों में ,या बहती हवाओं में।
ढूंढू मै तुम्हे कहा....
बचपन की गलियों में ,बारिश की बूंदों में, या बर्फ की गोली की चुस्कीयो में।
ढूंढू मै तुम्हे कहा...
बहन भाई की शरारतों में वो त्यौहार पे मिलने के बहानो में, दोस्तों के साथ बिताएं हुए उन यादों में।
ढूंढू मै तुम्हे कहा....
नजर तुम आते नहीं, क्यों इंतजार है तुम्हारा हर किसी को जिसके साथ बिताए यह लमहे तुमने।
मेरी निगाहें थक गई है, वो राहे अब रही नही हैं, हवाएं अब बदल गई हैं।
उम्मीद मैंने छोड़ दी है....
क्यों गलियां अब तंग है, बारिश की बूंदों में वो बात नही और अब आइसक्रीम का शोर ज्यादा है।
वह दिन अब कहां चले गए...
बहन भाई अब बड़े हो गए।
त्यौहार अब फोन पर होते हैं, दोस्तों के पास अब वक्त नहीं ,खो गए सब अपनी राहों में..
सोचते थे बड़े होकर सब पा लेंगे अब बचपन पाना चाहते हैं।
वह बचपन अच्छा था ,वह बचपन सच्चा था ,जहां पैसे का मोल सिर्फ टॉफी हुआ करता था।



© poemfeast
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