आखिरकार कौन सही है
#वस्तुकाआवारण
तू क्या जाने रे आसमानी निब,
जिन शब्दों पर तू इतरा रहा है,
वो कितने जख्मों से आएं है,
दर्पण ने फफकते फफकते कहा,
हकीकत जितना खूबसूरत होता है,
उतना ही भयावह,
जिन हाथों का तुझपे स्पर्श होता है,
वो कितने धाप से पकी हुई है,
तुझे क्या पता,
तुझे तो बस पता होता है,
धाप का 'धा' और 'प',
जाने कितने परीक्षाओं को जीतने,
तुझपे घसीटे गए,
जाने कितने शब्दों को संख्या,
तू कोरा है,
सच में कोरा ही है,
तू नही समझेगा रे उसकी पीड़ा,
मैंने देखा है उसे,
लोर से भरे भरे नैनों को,
बार बार पोंछ,
गालों को खून की लाली देते,
कभी सुना है तूने,
रातों में उठती उसकी सिसकियों को,
जो उफान धर लेती है,
कानों में पड़ती,
घर में पड़ी पैसे की तंगी...
तू क्या जाने रे आसमानी निब,
जिन शब्दों पर तू इतरा रहा है,
वो कितने जख्मों से आएं है,
दर्पण ने फफकते फफकते कहा,
हकीकत जितना खूबसूरत होता है,
उतना ही भयावह,
जिन हाथों का तुझपे स्पर्श होता है,
वो कितने धाप से पकी हुई है,
तुझे क्या पता,
तुझे तो बस पता होता है,
धाप का 'धा' और 'प',
जाने कितने परीक्षाओं को जीतने,
तुझपे घसीटे गए,
जाने कितने शब्दों को संख्या,
तू कोरा है,
सच में कोरा ही है,
तू नही समझेगा रे उसकी पीड़ा,
मैंने देखा है उसे,
लोर से भरे भरे नैनों को,
बार बार पोंछ,
गालों को खून की लाली देते,
कभी सुना है तूने,
रातों में उठती उसकी सिसकियों को,
जो उफान धर लेती है,
कानों में पड़ती,
घर में पड़ी पैसे की तंगी...