...

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जज़्बात ए दिल👀
किसी एक शख्स को यह एहसास दिलाना कि तुम जिंदगी हों मेरी
लेकिन उस एहसास को बार बार गलत साबित करना
सही है क्या?

वो कहते थे कि तुम्हारे अलावा किसी को वक्त नहीं दे सकता
लेकिन उसी समय किसी और को बाहों में लेना
सही है क्या?

सब कुछ जान बूझ कर करने के बाद
मुझसे माफी की उम्मीद रखना
सही है क्या?

होना चाहिए अदालत ए हिस भी
क्योंकि बार बार किसी का दिल दुखाके
बा इज्ज़त बरी हो जाना
सही है क्या?

मैं भी एक शख्स हूं,तुम्हारी तरह
ये समझ कर भी मेरा अंतर्मन छल्ली करना
सही है क्या?

ये सब करके भी ,तुम्हारे चेहरे पर
पश्चाताप की एक सिकन भी न पड़ना
सही है क्या?

मेरा सब कुछ जानने के बाद भी
तुमसे बदलने की उम्मीद रखना
सही है क्या?

© it's radha ✒️