...

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"" ऐसा क्यों है ? ""
"" मुझे अपना ही वजूद अक्सर समझ नहीं आता.... ,
मैं कौन हूं ? क्यों हूं ? यही राज मुझे कोई नहीं बतलाता... ,
सब तरकीबें लगा दी इस उलझन में , पर हार गई .....,
जब मैं कैसी हूं ? आखिर यही किसी को नजर नहीं आता.....!!



कौन सुनता है किसी की , फिर भी मेरा मन चाहता है कहती जाऊ ....,
आंखों मैं एक दरिया-सा है , बस इस धुंए के साथ बहती जाऊं......
मेरे लफ्ज़ मेरी हैसियत को जानकर चुप रहे थे ......,
पर क्यों ? एक अरमान-सा है , चुप रहकर सब सहती जाऊं......!!



ए ...जिंदगी एक ग़ज़ल मैं तेरे नाम जरूर लिखूंगी ...,
वक्त आने दे ,तेरी दि परेशानियों के मैं
बे-हिसाब राज पूछूंगी..... ,
टूट चुकी हूं मैं ,तेरी ईन बेरहम हरकतों से ......,
इंतजार है थोड़ा , फिर ग़ज़ल में बे-मिसाल मैं तेरे कसूर लिखूंगी.....!!!



आंख से आंख मिला यह दुनिया का असुल बात बनाता क्यों है ?
ए ....खुदा !! तू भी मुझसे खफा है... , तो फिर छुपाता क्यों है ....?
ना तू मेरे लिए गैर हैं , न तु...अपनों की तरह मिलता है.... ,
तू भी ईस "बेरहम " जमाने की तरह मुझे सताता क्यों है ...?
मुझे सताता है क्यों है .......?

JANKI KUNWAR
21.8.2022(11:32AM)
@jankikunwar23