...

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"" ऐसा क्यों है ? ""
"" मुझे अपना ही वजूद अक्सर समझ नहीं आता.... ,
मैं कौन हूं ? क्यों हूं ? यही राज मुझे कोई नहीं बतलाता... ,
सब तरकीबें लगा दी इस उलझन में , पर हार गई .....,
जब मैं कैसी हूं ? आखिर यही किसी को नजर नहीं आता.....!!



कौन सुनता है किसी की , फिर भी मेरा मन चाहता है कहती जाऊ ....,
आंखों मैं एक दरिया-सा है , बस इस धुंए के साथ बहती जाऊं......
मेरे लफ्ज़ मेरी हैसियत को जानकर चुप रहे थे ......,
पर...