फिरते है।
ऐ नींद आ जाया कर मेरी पलकों पे भी,
हम ना जाने कितने टूटे ख्वाब लिए फिरते है।
अल्फाज अल्फाज जाने कितने बुने एहसासो के धागों में,
अब ना जाने कितने नज़्म लिए फिरते है।
तेरी दरगाह पर रख ना सके यह अलग बात है खुदा,
आज भी हाथों में सूखे गुलाब लिए फिरते है।
सुकून की तलाश करते करते खुल गये महखाने,
अब भी वही पुरानी इत्र की खुशबू लिए फिरते है।
मेरे सारे ख्वाब गूँजती आवाजें हैं,
हम ना जाने कितने लंबी खामोशीयों को लिए फिरते है।
आँखों में है चमक सूरज सी किरणों की ,
जहन में शोर तारों सा लिए फिरते है।
ऐ चाँद ना इतराया करो खुद पे तुम भी,
हम भी जुगनूओं का चश्मा पहन रात लिए फिरते है।
हम ना जाने कितने टूटे ख्वाब लिए फिरते है।
अल्फाज अल्फाज जाने कितने बुने एहसासो के धागों में,
अब ना जाने कितने नज़्म लिए फिरते है।
तेरी दरगाह पर रख ना सके यह अलग बात है खुदा,
आज भी हाथों में सूखे गुलाब लिए फिरते है।
सुकून की तलाश करते करते खुल गये महखाने,
अब भी वही पुरानी इत्र की खुशबू लिए फिरते है।
मेरे सारे ख्वाब गूँजती आवाजें हैं,
हम ना जाने कितने लंबी खामोशीयों को लिए फिरते है।
आँखों में है चमक सूरज सी किरणों की ,
जहन में शोर तारों सा लिए फिरते है।
ऐ चाँद ना इतराया करो खुद पे तुम भी,
हम भी जुगनूओं का चश्मा पहन रात लिए फिरते है।