...

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बढ़ते चलें
आज का युग
बढ़ रहा है तेजी से
साथ चलें पकड़े हुए
छूट ना जाए उसके हाथ से
नहीं अस्तित्व मेरा कहां रहेगा
मैं उसी प्रकार अस्तित्व विहीन रह जाऊंगा जैसे एक बूंद समुद्र में |
हमें कोई नहीं देखेगा
क्योंकि कौन देखे
सभी बढ़ गए हैं
अपने को गति में लिए हैं
सभी की एक मंजिल है
मेरी भी मंजिल है
उस मंजिल के लिए ही साथ चलें |
साथ चलने के फायदे हैं
उसके अपने कायदे हैं
जिंदगी निराश नहीं होती
निराशा साथ नहीं होती
असफलता तो एक पहलू है
जहां सफलता रहेगी
वहां असफलता का अस्तित्व है
जैसे धरती के साथ आकाश का
दिन के साथ रात का |
उस दौड़ की धूल से
रास्ते के शूल से
भयभीत ना हो
क्योंकि वह भी हमारी एक परीक्षा है
कार्य की समीक्षा है
जिस रहस्य के खातिर
हम अवतरित हुए इस धरती पर
उसके लिए हम चले बढ़ते हुए |
© देवेश शुक्ला