...

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ध्येय...!

...और ... नदी सी बह कर
मैं पूर्ण कर लेना चाहती हूँ
अपना सफ़र...
शीध्रातिशीघ्र,
सफ़र का पूर्ण होना...
जो कि नि'यत भी है और मेरी नियती भी...

धूप के सब रंगों को
एकसार करने की कोशिश में
स्वयं सतरंगी हो कर
बहती हूँ...
छलकती हूँ... ...