...

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शुक्रिया!...
परिंदे, पौधे, बेजुबान, जमीं और आसमां तक ही मेरा सिलसिला रहा है।
मुझे सही और गलत में फर्क समझाने वाला,
कोई खुदा सा ही मिलता रहा है।
कोई मेरे गम की वजह न बने,
ज़िन्दगी से मैंने मुस्कुराना सीख लिया।
अच्छे बुरे हर हालत में,
मैंने खुद को आजमाना सीख लिया।
मुझे बेहतर बनाने की कशिश में,
जिसने जितना भी साथ दिया,
परिंदे, पौधे, बेजुबान हो या इंसान,
सभी का तहे दिल से शुक्रिया!

© मनीषा मीना