...

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आगे नहीं बढ़ पाई ....
आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाती हूं,,,
डर कर वापस लौट आती हूं,,,
हाथ थाम कर किसी और का ,,तेरे ख्यालों संग फेरे न ले लूं,,,
आंखों में इंतज़ार तेरा हो और ,,
मंगलसुत्र किसी और के नाम का पहन लूं।।।
इन ख्यालों से डर कर दिल शादी को नहीं मानता,,,
वो शादी का लाल जोड़ा,वो रस्में,वो हल्दी,वो मेंहदी,,,
हर लड़की की बचपन से सजाई हुई ख्वाहिश होती हैं।।।।
ये ख्वाहिशें मेरी ,,मेरे अतीथ पर से मेरा हक छीन न ले,,,
इस डर से मैं आगे बढ़ कर भी आगे बढ़ नहीं पाती हूं।।।।
दो कदम आगे तो चार कदम पीछे आती हूं,,,
पीछे छूट गया जो उसके निशान ले कर आती हूं।।।
हां मैं डरती हूं किसी और को अपनाने से,,,
क्योंकि खुद को बाट कर मैं अपने प्यार पर दाग़ नहीं चाहती हूं।
ज़रूरत नहीं मुझे अपने प्यार के लिए उसके साथ की,,,
आगे बढ़ने के लिए मैं भूल नहीं सकती उसे,,,
और शायद इसलिए मैं आगे नहीं बढ़ पाती हूं।।।।
वो पहली नज़र,वो पहली मुलाकात,वो पहली बात ,,
सब मुझे दिन और तारीख के साथ याद है,,,
चोट और ठ़ोकरों का हिसाब भी शिकायतों में लिपटा रखा है,,,
शिकायत करने का मौका मिलता तो कुछ बचता ही nhi,,,
इसलिए उनसे मिलने की टकटकी लगाई हैं,,,
आगे बढ़ना तो चाह रही हु पर बढ़ नही पा रही हु।।।
© vandana singh