...

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एहसास-ए-वस्ल
इत्र गुलाब सी महक उठती है सांसे मेरी
जब भी मेरी सांसों में घुलती है सांसे तेरी
सुर्ख अंगार सी दहक उठती है सांसे मेरी
जब भी मेरी सांसों से बहकती है सांसे तेरी

बेधड़क धड़कन धड़कती है बेतहाशा
कांपता है बदन,हर आहट होती प्रत्याशा
जाग उठती है फिर तन की अतृप्त आशा
चाहूं कि मिटा दूं ये दूरी पूरी करूं अभिलाषा

रोम-रोम होता पुलकित तेरी हर एक छुअन से
बहक जाता मन तेरे मदभरे अधरों के चुम्बन से
प्रखर ज्वार सा उठता फिर मेरे तड़पते बदन से
पिघल जाती हूं तुझ में,बह जाती,तेरे मिलन से

© agypsysoul

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