ज़हर
ख्यालों में पुलाव खाते हो, और तंज़ मुझपे कसते हो।
अपने ज़हर को सम्भाल के रखो कहीं और काम आयेगा,बार बार क्यो...
अपने ज़हर को सम्भाल के रखो कहीं और काम आयेगा,बार बार क्यो...