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" वसीयत "
" वसीयत "
जो लिखो ग़र वसीयत तो उसमें
खुद को तुम मेरे नाम लिख दो..!
अपने अधरों पर सुबह-शाम सिर्फ़
मेरा ही नाम लिख दो..!
जो घर लौटो तो मेरे गेसुओं में तुम
पिया अपने मोहब्बत का महक़ा सा
मोगरे का गजरा अपने हाथों से सजा दो..!
अपने दिल के दर्पण में तुम मेरी ही
तस्वीर लगा दो..!
रात्रि में चाँद की चाँदनी तले तुम बस
मेरे अधरों पर अपने नाम की मोहर
लगा दो..!
हम जल्द ही इस संसार में इक़ दूजे
से रूबरू हों..
नीली छतरी वाले से ये तुम ग़ुहार
लगा दो..!
जो लिखो ग़र वसीयत तो उसमें
खुद को तुम मेरे नाम लिख दो..!
🥀 teres@lways 🥀
जो लिखो ग़र वसीयत तो उसमें
खुद को तुम मेरे नाम लिख दो..!
अपने अधरों पर सुबह-शाम सिर्फ़
मेरा ही नाम लिख दो..!
जो घर लौटो तो मेरे गेसुओं में तुम
पिया अपने मोहब्बत का महक़ा सा
मोगरे का गजरा अपने हाथों से सजा दो..!
अपने दिल के दर्पण में तुम मेरी ही
तस्वीर लगा दो..!
रात्रि में चाँद की चाँदनी तले तुम बस
मेरे अधरों पर अपने नाम की मोहर
लगा दो..!
हम जल्द ही इस संसार में इक़ दूजे
से रूबरू हों..
नीली छतरी वाले से ये तुम ग़ुहार
लगा दो..!
जो लिखो ग़र वसीयत तो उसमें
खुद को तुम मेरे नाम लिख दो..!
🥀 teres@lways 🥀
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