...

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नसीब का काग़ज़
ऐ खुदा........ कभी नसीब के आसमा पर बैठा कर
और कभी नीचे गिरा दिया.......
ऐसा क्या था मेरे नसीब के कागज पर......
जो तुने जलाकर राख बना दिया........
कभी हसीन बना दि जिन्दगी मेरी.....
और कभी गम के ढेरो में घुमा दिया.....
कभी किसी को सास में अपना बना कर.....
और कभी पल में पराया बना दिया.....
ये......... खुदा।
ऐसा क्या था मेरे नसीब के कागज पर.........
जो तुने जला कर राख बना दिया..........
जब प्यार था इस दिल में.............
तब कदर न किया.........
जब दिल लगा किसी और से........
तो उसे वापस बुला लिया........
वाह रे....... खुदा तुने ये क्या किया......
अब तो तु बता दें..........
ऐसा क्या था मेरे नसीब के कागज पर.......
जो तुने जला कर राख बना दिया........
कितनी मुस्कराहट थी होठों पर ...
आज गम ने पहचान बना लिया........
ऐ...... खुदा क्या तुने खेल खेला.......
आज जीत को भी हार बना दिया.....
मेंहर कर खुदा और बता........
ऐसा क्या था मेरे नसीब के कागज पर...........
जो तुने जला कर राख बना दिया...........
न वौ वेवफा थे, और न मैने वेवफाई की........
सोचती हूँ, उसकी जिन्दगी खुश रहे.......
पर क्या करू...............
आज प्यार को मजबूरी बना लिया........
ऐ..... खुदा बता न अब........
ऐसा क्या था मेरे नसीब के कागज पर...........
जो तुने जल कर राख बना दिया.............
जला कर राख बना दिया।।।।।।।।।