...

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gazal e kafiya

आँख से गिर के कब उठा कोई
इस से बढ़ कर न है सज़ा कोई

ज़िन्दगी नर्क बन के रह जाये
वक़्त गर ऐसा आ पड़ा कोई

चाँद से चाँदनी का रिश्ता है
क्या अमावस से तम सजा कोई

रौनके-बाग़ सब गुलों से है...