...

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धरा की पुकार
**धरा की पुकार**

बढ़ रही मानव तेरी आवादी
ला रहा क्यों तू बरबादी ?
जंगल जंगल काट रहा है,
मुझको क्यों तू छाँट रहा है ?

मैं हूँ धरती मैया तेरी,
तेरा जीवन चाह मेरी,
सह रही हूँ बर्बरता तेरी,
सुन ले अब तू आह ये मेरी ।

छोड़ दे तू अब मुझ को सताना,
मुझ पर युं ही हक जताना,
इंसानियत का कर के बहाना,
कर ले थोड़ी सी मेरी सराहना ।

'माँ की ममता' की लाज तू रखले,
करूणा थोड़ी अपने मन में भरले,
रहने दे हरा-भरा मुझको
बोल रही ये प्यासी धरा तुझ को ।

कर रही हूँ ये तुझ से गुहार,
अब तो सुन ले तू मेरी पुकार,
आहत हृदय कर रहा हाहाकार,
युं ना कर तू मुझको लाचार ।


दिल की कलम
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