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नये ढंग नये रंग
दुनिया को नये ढंग से चलते देखा है,
दरअसल हमने वक्त बदलते देखा है..
जिन फूलों ने फ़िजाओं को महकाए रखा,
हमनें उन्हीं को हर दौर मसलते देखा है..
हार जाता है इंसान अपनों की ख़ातिर,
लोहे को भी तपिश में पिघलते देखा है..
यहाँ उम्र की हरियाली के ही कद्रदान हैं सारे,
सूखे पत्तों को अक्सर हमने जलते देखा है..
𝖘𝖍𝖆𝖐𝖙𝖎
© #socialsaintshakti
दरअसल हमने वक्त बदलते देखा है..
जिन फूलों ने फ़िजाओं को महकाए रखा,
हमनें उन्हीं को हर दौर मसलते देखा है..
हार जाता है इंसान अपनों की ख़ातिर,
लोहे को भी तपिश में पिघलते देखा है..
यहाँ उम्र की हरियाली के ही कद्रदान हैं सारे,
सूखे पत्तों को अक्सर हमने जलते देखा है..
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