आम से ख़ास और फिर ख़ाक बनते देर नहीं लगती
दो लोग साथ आए तभी एक रिश्ता बनता है।
रिश्ते की नीव मजबूत हो इसके लिए बहुत कुछ करना पड़ता है।
रिश्ते बना तो हर किसी से सकते है मगर निभा पाना सबकी बस की बात नहीं।
आजकल टेंपररी के जमाने में परमानेंट वाला रिश्ता और प्यार नामुमकिन सा हो गया है ।
फ़िर भी उम्मीद रहता है कि कोई तो होगा जो हमे समझेगा और हम जैसे है वैसे अपना कर हमे चाहेगा ।
ऐसे में दो अजनबी एक साथ आते है उनके बीच नजदीकियां बढ़ती है और न जाने कितने ख़्वाब, अरमां सजा एक दूजे के होने की मन्नत मांगते है ।
फ़िर अचानक सब कुछ बदल सा जाता है और दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते है ।
लड़का को लड़की की गलतियां व झूठ नज़र आता है और लड़की को उसकी गलतियां।
ऐसे में दोनों एक दूसरे के साथ नहीं रह पाते और उनका साथ छूट जाता है ।
उसके बाद का जो आलम होता है उसे मैंने दोनों की तरफ़ से बया करने की कोशिश की है।
* वो लड़का कहता है -
तुम मेरा गुरूर थी,राहत-ए- सुकून थी।
तुमसे दूरी मंज़ूर ना थी।
पर झूठ बोलने में अख़बार से तुम कम ना थी।
सहता मैं कितना ? देख तेरा रवैया।
रोता मैं रहता, तेरा बदलना जो मुझको खलता।
तेरे साथ होने की मन्नत करी थी,
तुझमें मुझको अपनी मां की छवि दिखती थी।
ख़्वाबों-ख्वाहिशों की एक अलग दुनियां मैंने तेरे संग सजा रखी थी।
न जाने कब इतनी मोहब्बत तुमसे हो गई थी।
जब तू किसी गैर के लिए मुझको धोखा दे रही थी।
मैं बेबस तुमसे दो बोल को तरसता।
तू कितनी बेगैरत हो गई थी?
मेरा जो हाल बेहाल था,तुझको नज़र ना आया।तुझको इतना खुदपे अभिमान था, जो हर बार ही करती मेरा अपमान थी।
इतना सबके बाद भी,मैं तेरा होना चाहता था।
तूने तो मन बना रखा था मुझे खुद से दूर करने का।
मैं ही पागल था जो डरता रहा तुझे खोने से।
सही-गलत, उल्टे-सिलटें हरक़त तक को मजबूर था।
प्यार में तेरे कितना लाचार मैं गिरा बेकार था।
अब भी सब सोच रूह सहेम जाता है।
तेरे होने के ऐहसास तक से मन घबरा, दिल बेचैन हो जाता है।
कभी जो दिल को तेरे होने से सुकून मिलता था।
अब हाल ऐसा है इसे दर्द-तकलीफ़ महसूस होता है।
अब तू दूर ही रहे तो अच्छा है।
मेरे लिए तो तू मर गई है, पर अपनी ज़िन्दगी में मुझे छोड़ तू ख़ुश ही रहे तो अच्छा है।
पछताना जों हुआ तुझे कभी, घुटन में मर ना जाए तू कही।...
रिश्ते की नीव मजबूत हो इसके लिए बहुत कुछ करना पड़ता है।
रिश्ते बना तो हर किसी से सकते है मगर निभा पाना सबकी बस की बात नहीं।
आजकल टेंपररी के जमाने में परमानेंट वाला रिश्ता और प्यार नामुमकिन सा हो गया है ।
फ़िर भी उम्मीद रहता है कि कोई तो होगा जो हमे समझेगा और हम जैसे है वैसे अपना कर हमे चाहेगा ।
ऐसे में दो अजनबी एक साथ आते है उनके बीच नजदीकियां बढ़ती है और न जाने कितने ख़्वाब, अरमां सजा एक दूजे के होने की मन्नत मांगते है ।
फ़िर अचानक सब कुछ बदल सा जाता है और दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते है ।
लड़का को लड़की की गलतियां व झूठ नज़र आता है और लड़की को उसकी गलतियां।
ऐसे में दोनों एक दूसरे के साथ नहीं रह पाते और उनका साथ छूट जाता है ।
उसके बाद का जो आलम होता है उसे मैंने दोनों की तरफ़ से बया करने की कोशिश की है।
* वो लड़का कहता है -
तुम मेरा गुरूर थी,राहत-ए- सुकून थी।
तुमसे दूरी मंज़ूर ना थी।
पर झूठ बोलने में अख़बार से तुम कम ना थी।
सहता मैं कितना ? देख तेरा रवैया।
रोता मैं रहता, तेरा बदलना जो मुझको खलता।
तेरे साथ होने की मन्नत करी थी,
तुझमें मुझको अपनी मां की छवि दिखती थी।
ख़्वाबों-ख्वाहिशों की एक अलग दुनियां मैंने तेरे संग सजा रखी थी।
न जाने कब इतनी मोहब्बत तुमसे हो गई थी।
जब तू किसी गैर के लिए मुझको धोखा दे रही थी।
मैं बेबस तुमसे दो बोल को तरसता।
तू कितनी बेगैरत हो गई थी?
मेरा जो हाल बेहाल था,तुझको नज़र ना आया।तुझको इतना खुदपे अभिमान था, जो हर बार ही करती मेरा अपमान थी।
इतना सबके बाद भी,मैं तेरा होना चाहता था।
तूने तो मन बना रखा था मुझे खुद से दूर करने का।
मैं ही पागल था जो डरता रहा तुझे खोने से।
सही-गलत, उल्टे-सिलटें हरक़त तक को मजबूर था।
प्यार में तेरे कितना लाचार मैं गिरा बेकार था।
अब भी सब सोच रूह सहेम जाता है।
तेरे होने के ऐहसास तक से मन घबरा, दिल बेचैन हो जाता है।
कभी जो दिल को तेरे होने से सुकून मिलता था।
अब हाल ऐसा है इसे दर्द-तकलीफ़ महसूस होता है।
अब तू दूर ही रहे तो अच्छा है।
मेरे लिए तो तू मर गई है, पर अपनी ज़िन्दगी में मुझे छोड़ तू ख़ुश ही रहे तो अच्छा है।
पछताना जों हुआ तुझे कभी, घुटन में मर ना जाए तू कही।...