...

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इश्क़
इज़हार-ऐ-मोहब्बत तो सभी करते है
कुछ अलग है तो तुम बतलाओ
साथ जीने मरने की कसमों को छोड़ो
झुकी हो जब मेरी कमर तब की कहो,
यूँ ही मुश्कान से तेरी हो अपनी हर सुबह
सफेदी की चादर में लिपटे मेरे बालों तक.
थामें मेरे हाथों को तुम चलना शाम तलक
कुछ यूं ही कदम मिला कर संग बढ़ना,
हाथों की मेहंदी से बालों की चांदी तक
चुमु जो तेरी चेहरे की झुर्रियों को की तुम मुश्कुरा देना,
बात पते की एक कहता हूं
सात जन्मों का इश्क़ बस एक बार दे देना.
© LivingSpirit