...

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रात नहीं होती...
आँखे बरसती हैं उनकी याद में, वो कहते हैं बरसात नहीं होतीं
बिस्तर पर करवटें बदलते हैं हम, जाने क्यु सकूँ की रात नहीं होती

आते तो हैं वो रोज़ मेरे ख़्वाबों-ख़्यालों में मुझसे रूबरू होने
लेकिन उनसे मुद्दतों तलक, रूबरू कोई मुलाकात नहीं होती

जब होते हैं हम एक अर्से बाद मुखातिब उनसे,... मेरे जानिब
निगाहें ख़ामोश और लब लरज़ते हैं बोलने को पर बात नहीं होती

मैं अक्सर खाली कांसा लिए लौट आता हूँ, मेरे टूटे से हुजरे में
मिलते हैं भर-भर झूठे दिलासे, पर अपनेपन की खैरात नहीं होती

अरे झूठे ही सही मुझसे कभी मेरा हाल-चाल जान लिया होता
मैं उतने से ही ख़ुश रहता उससे बड़ी मेरे लिए कोई सौगात नहीं होती

जाने मुझपे कैसी ये ग़ुर्बत हैं, सफ़र ये आख़री पर कोई नज़र नहीं आता
चलो रख दो मेरा जनाज़ा मेरे ही कंधों पे अब और मुझेसे इश्फ़ाक़ नहीं होती

© विकास शर्मा