...

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यूं तो मैं .....!!
यूं तो मैं अनजानों से बात नहीं करती,
पर वो अनजान भी पहचाना सा लगा।
बातें उसकी बनावटी नहीं लगती थी,
परवाह उसकी फरेब नहीं लगती थी।
वह अनजान जादूगर तोड़कर सारी दीवारें,
जिंदगी में मेरी जगह अपनी बनाने लगा।
यूं तो मैं अनजानों से मिला नहीं करती,
पर वह अनजान भी पहचाना सा लगा।
बात करके केवल कुछ रोज,
वह बरसो पुराना यार लगा।
मैं सज कर पहुंच गई उससे मिलने को पहली बार,
मिलकर उससे मुझे वो कुछ एक ख्वाब सा लगा।
यूं तो मैं अनजानों के सपने नहीं देखती,
पर वो अनजान भी पहचाना सा लगा।
ना जाने कैसे उसका आना जिंदगी में,
एक सपना सच होता सा लगा।
मैं तो अनजानों से बात भी नहीं करती थी,
पर अब ये दिल उसे चाहने है लगा।
वो अनजान अब एक अपना है लगता,
साथ उसका मेरे होना एक सपना है लगता।
अहमियत उसकी मैं उसे भी नहीं समझा सकती,
बस यूं है कि,
अब अपनों से भी ज्यादा वो अनजान है अपना लगता।_____❤️