गाली.. एक अभिशाप
गाली... एक अभिशाप
बड़े बनते हो तुम हे पुरुष
अधिकार भी जताते हो
मर्जी ना हो फिर भी तुम
हर बार जीत जाते हो
मां बहन बेटियों को तुम
स्वरूप देवी का मानते हो
संस्कार और मर्यादा से न हो खिलवाड़
अक्सर ये याद रखते हो
फिर जब आहत होते हो तुम
या कुचले जाते है अभिमान तो
क्यों हर बार भूल जाते हो
झूठे अहंकार को बचाने में
तुम स्त्री की मर्यादा को ही
तार तार कर जाते हो
अपशब्द बोलने में एक बार भी
भी घबराते हो
बात बात पर अपनी ही मां...