...

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मेरी तृष्णा!
तुम्हें प्रिय मैं कैसे कहूँ
के तुम मुझ में समाए कितना हो,
हर साँस-साँस में बस तुम ही तुम हो
जैसे शज़र से बेलों का लिपटना हो,

तुम जीवन हो तुम प्राण प्रिय
तुम मेरा अनमिट सा इक़ सपना हो,
अथाह तुझे यूँ प्रेम किया
के जैसे मैं पूजा तुम कोई प्रतिमा हो,

सोचूँ तुम्हें किस रूप में पाउँ
तुम बोलो तो रुक्मणि बन जाऊँ
या फिऱ मीरा की भक्ति में समाऊं,

बस तुम ही तुम.. मेरी तृष्णा हो
प्रिय.. मैं राधा तुम कृष्णा हो!!




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