मेरी तृष्णा!
तुम्हें प्रिय मैं कैसे कहूँ
के तुम मुझ में समाए कितना हो,
हर साँस-साँस में बस तुम ही तुम हो
जैसे शज़र से बेलों का लिपटना हो,
तुम जीवन हो तुम प्राण प्रिय
तुम मेरा अनमिट...
के तुम मुझ में समाए कितना हो,
हर साँस-साँस में बस तुम ही तुम हो
जैसे शज़र से बेलों का लिपटना हो,
तुम जीवन हो तुम प्राण प्रिय
तुम मेरा अनमिट...