...

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ये वो ज़ख्म हैं जो........

कभी तो तमन्ना ने जोर भरा था
कि आज़ तो वो मेरे बनके रहेंगे
वो आज़ जाने कब का रूख़सत है
और हम हैं कि अब भी उस कल में पड़े हैं
ये वो ज़ख्म हैं जो अभी भी हरे हैं ।

एकतरफ़ा नहीं था अगर गफ़लत भी हो तो
कहा था बयां करना अगर नफ़रत भी हो तो
हामी थी उनकी भी ये वो भी जानते हैं
ये नासमझ हे दिल कहां पहचान करे है
ये वो ज़ख्म हैं जो अभी भी हरे हैं।

खैऱ भरेंगे कभी तो अगर गहरें हैं तो भी
वो किसी और के बनेंगे अगर मेरे हैं तो भी
हकीकत़ यहीं है इसे कैसे समझाऊं
नादान ये दिल कितनी उम्मीदें भरे है
ये वो ज़ख्म हैं जो अभी भी हरे हैं ।

रूह़ तो वाज़िव है फ़रेबों में यकीं करती नही
होते हैं आशिक़ तबाह मोह़ब्बत कभी मरती नही
कामयाब ही समझूंगा अपनी मोह़ब्बत को तब भी
अगर रूह़ भी तेरी तुझसे नफ़रत ही करे है
ये वो ज़ख्म हैं जो अभी भी हरे हैं ।