** एक रावण जी रहा है ***
आज भी जीवंत है वह
बह रहा हर रक्त कण में।
नाश जिसका हो चुका था
राम के बाणों से रण में।।
हम दहन करते हैं पुतले
हर्ष भरते अपने मन में ।
किन्तु वह तो अमर बन कर
राज करता हृदय - तन में।।
हर शपथ , संकल्प पर वह
पड़ रहा हर बार भारी।
व्यर्थ सी लगने लगी है
राम की शर- शक्ति सारी।।
जग रहा नयनों में अब भी
काम का संवाह बनकर।
कभी मिथ्या दम्भ होकर
कभी कुत्सित चाह बनकर।।
लोभ का सोपान बनकर
जाति का अभिमान बनकर।
कभी स्व का दम्भ बनकर
कभी नश्वर आन बनकर।।
पैठ उसकी बहुत गहरी
न्यस्त है हर...
बह रहा हर रक्त कण में।
नाश जिसका हो चुका था
राम के बाणों से रण में।।
हम दहन करते हैं पुतले
हर्ष भरते अपने मन में ।
किन्तु वह तो अमर बन कर
राज करता हृदय - तन में।।
हर शपथ , संकल्प पर वह
पड़ रहा हर बार भारी।
व्यर्थ सी लगने लगी है
राम की शर- शक्ति सारी।।
जग रहा नयनों में अब भी
काम का संवाह बनकर।
कभी मिथ्या दम्भ होकर
कभी कुत्सित चाह बनकर।।
लोभ का सोपान बनकर
जाति का अभिमान बनकर।
कभी स्व का दम्भ बनकर
कभी नश्वर आन बनकर।।
पैठ उसकी बहुत गहरी
न्यस्त है हर...