...

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तुम मुझमें कुछ ऐसे बसती हो
तुम मुझमें कुछ ऐसे बसती हो
लहू बन मेरी रगो में गसती हो
सांसे बन मेरे हृदय में रसती हो
सच कहूं मेरे जीवन की मस्ती हो

मेरे दिल का आधार तुम हो
मेरे हृदय का श्रृंगार तुम हो
मेरे प्राणों का इकरार तुम हो
मेरे जीवन का प्यार तुम हो

मेरी आंखो की नजर तुम हो
मेरे होठों की सबर तुम हो
मेरी मुस्कराहट की डगर तुम हो
मेरी जिंदगी की हमसफर तुम हो

मेरे तन में तुम हो
मेरे मन मैं तुम हो
मेरे नयन में तुम हो
मेरे शयन में तुम हो

मेरी आह में तुम हो
मेरी चाह में तुम हो
मेरी राह में तुम हो
मेरी फिजाह में तुम हो

मेरे रत्य मैं तुम हो
मेरे सत्य मैं तुम हो
मेरे आरंभ में तुम हो
मेरे प्रारब्ध मैं तुम हो

मेरे रोज में तुम हो
मेरे मनोज में तुम हो
मेरे शुष्क मैं तुम हो
मेरे पुष्प में तुम हो
सच कहूं या झूठ कहूं
बस मुझमें तुम हो सिर्फ तुम हो।।
© Manoj Vinod-SuthaR