...

17 views

मैं घास हूं
मैं घास हूं -
नहीं पता , कि मेरी जड़ कहां तक है?
बस यही पता है- जो इतना लचीला हूं
कि कोई कुचल देता है ;
असहनीय पीड़ा होती है ,
पर बोलता नहीं हूं ;
क्योंकि मैं घास हूं ।

किसान आकर कई बार काटता है मुझे,
सूरज आकर जला देता है मुझे ,
कभी तो मुझे पानी भी गला देता है
- जैसे होऊं मैं सबका दुश्मन ;
पर, मैं सहता जाता हूं
कि जीना तो है;

यह मानकर कि किसान, सूरज और पानी की जरूरत है मुझे
मैं लहलहा जाता हूं ,
और नीले - नीले फूलों से सुहाता रहा हूं मैं
मुझे याद नहीं रहता कि मेरे साथ क्या हुआ;
और मैं बढ़  जाता हूं इतना
कि कई बार होती है जड़ से खातमे की कोशिश,
पर, मैं वैसा ही उपहास हूं ,
क्योंकि मैं घास हूं !!

© शैलेंद्र मिश्र ' शाश्वत '
21/08/2013

# जीवन #यथार्थ