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दहलीज
"दहलीज"
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बड़े ही नाज- नखरे उठाकर
बहुत ही प्यार से,
बचपन की दहलीज को पार कराते हैं माता-पिता।
अपनी जीवन भर की कमाई अपने बच्चों पर न्योछावर कर देते हैं माता-पिता।
अपनी खुशियां, अपनी नींदें अपना सुकून भी कर देते हैं कुर्बान,अपने बच्चों के लिए।
खुद दुःख सहकर, जमाने भर की खुशियां अपने बच्चों की झोली में डाल देते हैं माता-पिता।
उनके जीवन भर की तपस्या और बलिदान का कुछ भी मोल नहीं। चलते-चलते गिर न परू रास्ते में कहीं,
इसलिए हाथ मेरा थाम लेते थे माता-पिता।
कभी बनकर मेरी हिम्मत तो कभी ढ़ाल आगे बढ़ते थे माता-पिता। आज जब वह दोनों उम्र के उस...