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दहलीज
"दहलीज"
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बड़े ही नाज- नखरे उठाकर
बहुत ही प्यार से,
बचपन की दहलीज को पार कराते हैं माता-पिता।
अपनी जीवन भर की कमाई अपने बच्चों पर न्योछावर कर देते हैं माता-पिता।
अपनी खुशियां, अपनी नींदें अपना सुकून भी कर देते हैं कुर्बान,अपने बच्चों के लिए।
खुद दुःख सहकर, जमाने भर की खुशियां अपने बच्चों की झोली में डाल देते हैं माता-पिता।
उनके जीवन भर की तपस्या और बलिदान का कुछ भी मोल नहीं। चलते-चलते गिर न परू रास्ते में कहीं,
इसलिए हाथ मेरा थाम लेते थे माता-पिता।
कभी बनकर मेरी हिम्मत तो कभी ढ़ाल आगे बढ़ते थे माता-पिता। आज जब वह दोनों उम्र के उस पड़ाव पर है, जहां एक दिन मैं उन जैसा था।
कल को वह दोनों मेरे जीवन का सहारा थे और आज उनका बेटा उनकी जीने का सहारा है।
कल को उन्होंने मेरी उंगली पकड़ चलना मुझे सिखाया था और आज मेरा फर्ज है कि मैं उनकी हाथों को मजबूती दूं,
और यह बात मुझे आज पानी के उस प्रतिबिंब में देखकर समझ आई।
जिसमें मेरा पूरा बचपन मुझे दिखाई दे गया और
मेरे अंतरात्मा को झकझोर गया, और याद करा गया वह मंजर जब मैं छोटा था और पानी को देखकर डर जाता था,
तब जोर से थाम लेता था मैं अपने मां-बाबा का हाथ।
इस विश्वास से कि वह मुझे गिरने और डुबने नहीं देंगे।
आज वही विश्वास मुझे उनके दिलों में जगाना होगा।
और एक अच्छे बेटे के भातीं अपना फर्ज निभाना होगा,
और लोगों के दिल से बुढ़ापे का खौफ मिटाना होगा।
जीवन के इस कठिन पड़ाव में उनका मजबूत सहारा बनना होगा।
और अपने जन्म को सार्थक बनाना होगा।
दुनिया मिसाल दे, जिसकी वैसा बेटा बन दिखाना होगा।

माधुरी राठौर, ✍️