...

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रुहानी सफ़र
तुम नही तुम्हारा अक्स भी नही
अब कोई न हो...चाहत मे !
रहने दो गर्काब मुझे तुम्हारी
यादो के...समंदर मे !

आँस नही टुटते सितारे से
खो जाउंगा ....खलाओ मे !
फना हो जाने दो मुझे अब
मेरे वजुद को.... इश्क मे !

खो गया है हमसफर
छुटा साथ ...बिच राह मे !
खत्म एक सफर रुहानी
अनजान विराँ.... राहो मे !

कब्र नही महल है इश्क का
रुह तक.. खोया हुँ तुझ मे !
साँस थमी...नब्ज़ रुकी है
सो रहा हुँ...मै अजल मे !
© संदीप देशमुख