...

23 views

कुछ यूं ही,,,,
दुपहरी की घनी धूप में, कभी-कभी बारिश भी कुछ यूं ही बरस जाती है!!

ठिठुरते ,हुई सर्दी में, कभी-कभी धूप भी अनायाश निकल आती हैं!!

ना चाहते हुए, भी, कुछ यूं ही,, हो जाता है,
अच्छा लगता है, सुकून देता है,!!

यह नहीं बदल सकता, यह हो नहीं सकता,
बस हमारे कोरी कल्पना की बंदिशों में हैं।!

कुछ यूं ही हम बदले, पल भर के लिए सही,
कुछ अलग सा लगेगा, लेकिन हर समाँ बदल जाता है!!
जब सुखों की मधुशाला ,खत्म हो सकती है।
तो दर्द भरे दुखों की पाठशाला क्यों नहीं!!

कुछ पन्ने पलट कर देखों, या पुस्तक ही बदल के देखो, नयी हवा, नया पाठ,,
नयी फिजाओं में पल भर ही खेलों!!

सोच बदल जायेगी, समाँ बदल जाएगा,
कुछ नया महूसस करोगे,,
,रास्ता बड़ा ही साफ नजर आएगा!!

कुछ पुराना छूटेगा, कुछ नया मिलेगा,,
नयी स्फूर्ति, नया प्राण,
नयी चेतना, नया ज्ञान!!

और कुछ यूं ही ,कट जाएगा यह खूबसूरत सा सफर ।
हँसते-हँसते, पूरी उमंग के साथ!!!

© Rishav Bhatt