...

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बचपन
बचपन महज़ लफ़्ज़ नहीं, जिंदगी है मेरी,
हर लम्हा यादों मे बसी, दिल्लगी है मेरी।
वो किसी पल खुशहाली से मुत्तसिल हो जाना,
तो किसी पल किलकारी से दिल को बहलाना।
वो कभी-भी बेचैनी से मुखातिब न होना,
कभी-भी न फिक्र से वो, रुबरु हो जीना।
वो ख्यालों और ख्वाहिशों की दिल से मुलाकात,
वो पल-भर में बदलता मन, हर पल बदलते जज्बात।
कुछ दोस्ताना जो हुआ शुरु, मस्ती-मौज-और मज़े के साथ,
वो शरारतों का आगाज़, तो कुछ मीठी सी सज़ा के साथ।
देखते ही देखते मज़ेदार ऐसे कई मंज़र,
न जाने कब बीत गया बचपन का ये सफर।
बड़े होने की चाह में हम आखिर…बड़े तो हो गए
लेकिन बचपन के वो सारे दिन…पता नहीं कहाँ खो गए?

© Utkarsh Ahuja