...

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ज़िंदादिल
राख उड़ती है फिज़ाओं में।
और दर्द तेरा नदियों सा बहता जाता है।
कोई कहता है ये तू नहीं है।
कोई तुझे सदियों में भी ना ढूंढ पाता है।
कोई कहता है दिलजला है तू।
कोई हर वक़्त तुझे भुल ही जाता है।
कोई है दरपेश तेरे हर लम्हा।
कोई ज़िंदा कभी तुझको क्या याद आता है?
कोई खंजर भी लगा देता है तेरे सीने में।
कोई दवा के नाम पर ज़हर दे जाता है।
कोई बोलता है तू सुन बस उनकी।
कोई कहां तेरी चुप्पी को कभी सुन पाता है?
कोई देखता नहीं तुझे पलट कर कभी।
कोई झूठे वादों में तुझे ज़िन्दगी दिखाता है।
कोई फरेब को ही वफा कहता है यहां।
कोई वफा कह कर तुझे फरेब दे जाता है।
कोई बोलता है इज्ज़त है तेरी बहुत।
कोई इज्ज़त कह कर तेरी आबरू छीन जाता है।
कोई इल्ज़ाम लगा देता है तुझपे कई।
कोई तेरी पेशी पर कहां तुझसे मिलने आता है?
कोई कहता है नहीं है मतलब तेरी बातों से।
कोई मिलकर बस ख़ुद की मतलब के बात सुनाता है।
कोई आता है साथ रहने कर के साजिशें कई।
कोई साजिशें तेरे साथ रह कर तुझसे कर जाता है।
कोई बहुत अच्छे हो कहता है तुझको।
कोई तुझे छोड़ कर तेरी बुराइयां तुझे गिनाता है।
कोई बोलता है मर गया है तू इस ज़माने में कब का।
कोई पढ़ कर तुझे वाह ज़िंदादिल वाह ज़िंदादिल बुलाता है।।
© ज़िंदादिल संदीप