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चक्रव्यूह
जीवन एक जंग है
जीतना एक भ्रम है
मुसीबतें ही इसका रंग है।

संघर्ष बिना ये नीरस है
खाते पीते सोते रहना
तो पशुओं के भी बस में है।।

तितली कोशष्ठ में पल पल है तड़पती
सुंदर पंख लहराने को हे वो तरसती
इस संघर्ष और समय के निवेश ने ही
उसे खूबसूरती और वाहवाही दी।

है प्रकृति का नियम ये
कुछ पाना है बेहतर
तो कुछ खोना होगा उतना ही बेहतर।

जीवन मरण एक चक्र है
हमसब उसके भाग है
अगर पहुचना है उससे उपर
तो दर्पण और परछाई सा फबना होगा
यानी खरा और विश्वासपात्र है बनना होगा।।

अभिलाषाएं कहा कमतर है
हमसब इसके अनुचर है
एक पूर्ण तो दूसरी शुरू
जीवन यही सरगम है।

पीड़ा वेदना में रहता हर इंसान
जिम्मेदारी पाल रखी ही इतनी सरपर है
इसके पाने और उसके जाने
के बाद ही सुख मिलेगा
यह बातें सब मृगतृष्णा है।।

यह नर भी कितना अनुपम है
जगदीश भी सोचता यह हरपल है
मात्र इंसान ऐसा जीव जो मुस्कुरा सकता
वही अब आनंदित होना भूल गया
उसका सन्तोषमयता से स्मृतिलोप हो गया।

घमंड वो पतंग है
चाहते लालसा जिसकी कच्ची डोर है
यह डोर फिर भी पकड़ना
मनुष्य का अदृड़ संकल्प है।

मीत प्रीति सब मिथ्या है
इस जंग को जीत पाना ही
एक अफवाह है।
बस खुश रह पाना ही वह औषधि है
जो भर सकती थोड़े मलहम है।।

जीवन एक जंग है
जीतना एक भ्रम है
विचित्र है
अपितु सत्य है।।।.....

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