चुभन
कैसी ये तक़दीर है कुछ समझ नहीं आता
क्यों इस तक़दीर पर कोई तरस नहीं खाता
ख़ुशी पर क्यों इतनी जल्दी नज़र लग जाती है
ज़ख़्म पर अपना कोई मलम क्यों नहीं लगाता
हर बार कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है
जख्म मेेरा कोई गहरा कर जाता है
फिर घाव भरने की क़वायद जारी है
फिर तक़दीर को कोसने की बारी है
© ख़यालों में रमता जोगी
क्यों इस तक़दीर पर कोई तरस नहीं खाता
ख़ुशी पर क्यों इतनी जल्दी नज़र लग जाती है
ज़ख़्म पर अपना कोई मलम क्यों नहीं लगाता
हर बार कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है
जख्म मेेरा कोई गहरा कर जाता है
फिर घाव भरने की क़वायद जारी है
फिर तक़दीर को कोसने की बारी है
© ख़यालों में रमता जोगी