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दूसरी लहर
दूसरी लहर

लो फिर आ गई दूसरी लहर दुनिया में,
फिर लौटी है वही ड़रावनी शाम दुनिया में !
सोचा था के अब तो करेंगे मौज़ मस्ती सभी,
सोचा ना था की फिर होगा हंगामा ये दुनिया में !

कर लो तैयारियां फिर थालिया बजाने की,
कमर कस लो पहन कर ढाल फौलाद बन जाओ !
शाम ढलते सभी अपने अपने आँगन में पहुंच जाना,
जलाकर शमा रख देना शायद रौशनी हो जाये !

ना देखता है किसी को उम्र के हिसाब से ये कोरोना,
हो जाये तो माहोल खुशियों का बदलता है ये रोना !
दौलत भी किसी के काम फिर ना आ सकेगी दोस्त,
अभी भी वक़्त है पहचान ले इसके अंजाम को ढोना !

रख कर सभी ताक पर क़ायदे और कानून,
लगे है सभी जश्न मानाने में इंतिख़ाब को !
कुछ पलटने और कुछ फिर बढ़ने की तैयारी में है,
बेख़ौफ़ और बेबाक बनकर गले लगाने कोरोना को !

कहीं ऐसा न हो फिर से वही माहौल बन जाये,
शहर छोड़ छोड़ के सभी अपने घरो को लौट जाये !
तवज़्ज़ो दो सभी करता है गुज़ारिश तुमसे ये "रवि",
कर लो काबू इसे कही फिर ये हमारे घरो में ना घुस जाये !

राकेश जैकब "रवि"