अस्तित्व की खोज
स्त्री की कहाँ पहचान है, अपने नाम में वह कहाँ जान जाए, किसी ना किसी की जरूरत उन्हें पड़ जाए…..
उठ औरत तुम क्यों सो रही, काँटों में बिछी फिर भी तू खो रही, अपने अस्तित्व की खोज कर तू क्यों डर रही, अकेली ही तू काफ़ी, कर अपने अस्तित्व की पहचान नई...
कुछ करने की हिम्मत कर, हौसला तुम खुद पे कर, कम तू किसी से नहीं, अपने अस्तित्व की पहचान तो कर...
कब तक तुम दूसरों के नाम से जी...
उठ औरत तुम क्यों सो रही, काँटों में बिछी फिर भी तू खो रही, अपने अस्तित्व की खोज कर तू क्यों डर रही, अकेली ही तू काफ़ी, कर अपने अस्तित्व की पहचान नई...
कुछ करने की हिम्मत कर, हौसला तुम खुद पे कर, कम तू किसी से नहीं, अपने अस्तित्व की पहचान तो कर...
कब तक तुम दूसरों के नाम से जी...