भीड़ की कहानी
मैं तन्हाई में सोच रही थी,
ज़िन्दगी अपनी
कैसे गुजरी ? क्या खोया?
क्या पाया?
कब अपनों ने कर दिया पराया
ग़म का बोझ दिल पे रख
सोचा बदनसीब कोई नहीं हैँ मुझसा
मैं करने को फरियाद मंदिर
को चली
सोचा मन में पूछूँगी
क्यों?इसी उम्र में मैं
बीमारियों से घिरी
इस भरी दुनियां में
दर्द सहने को क्या
मैं ही मिली?
मंदिर पहुंची तो देखा
फरियादियों की
बड़ी भीड़ थी
लंबी थी कतारें
आँखें दर्शन पाने को
अधीर थी
मैंने आप - पास के लोगों का
मुआयना किया,
किसी की आँखों में चमक
तो किसी की नज़रे खामोश थी
कोई खड़ा था अकड़ के
तो किसी की गर्दन...
ज़िन्दगी अपनी
कैसे गुजरी ? क्या खोया?
क्या पाया?
कब अपनों ने कर दिया पराया
ग़म का बोझ दिल पे रख
सोचा बदनसीब कोई नहीं हैँ मुझसा
मैं करने को फरियाद मंदिर
को चली
सोचा मन में पूछूँगी
क्यों?इसी उम्र में मैं
बीमारियों से घिरी
इस भरी दुनियां में
दर्द सहने को क्या
मैं ही मिली?
मंदिर पहुंची तो देखा
फरियादियों की
बड़ी भीड़ थी
लंबी थी कतारें
आँखें दर्शन पाने को
अधीर थी
मैंने आप - पास के लोगों का
मुआयना किया,
किसी की आँखों में चमक
तो किसी की नज़रे खामोश थी
कोई खड़ा था अकड़ के
तो किसी की गर्दन...