...

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क्यूँ नहीं?
बुलाता है मगर आता क्यूँ नहीं,
फूल है तो मुर्झाता क्यूँ नहीं?
तेरी खुशबू बहुत दिल-फरेब है,
तू मगर इतराता क्यूँ नहीं?
बहुत नासाज़ हैं मिज़ाज मेरे,
तू मेरा दिल बहलाता क्यूँ नहीं?
कांटों के नर्गे मे बड़ा पुर सुकून लगता है,
दुश्मन हूँ मैं तेरा मुझ पर झुंझलाता क्यूँ नहीं?
ऐ दोस्त तू मेरे सवालों से पक नहीं गया?
अगर ऐंसा है तो ज़मीं पर आता क्यूँ नहीं?

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© alfaaz-e-aas