...

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काशी और तुम
काशी की तंग गलियों सी,
तुम सुंदर अस्सी घाट प्रिये।
मैं तपती धूप दुपहरी की,
तुम शीतल चाँदनी रात प्रिये।
मैं बाज़ारों की भौतिकता,
तुम मणिकर्णिका का सच हो।
तुम बिन क्या अस्तित्व मेरा,
तुम इति मेरी मेरा अथ हो।
मैं इंतज़ार की घड़ियों सी,
तुम मंज़िल का आभास प्रिये।
मैं बरसों की हूँ वीरानी,
तुम जनम जनम का साथ प्रिये।
मैं लहरों की हूँ चंचलता,
तुम सागर की गहराई हो।
मैं क्षणभंगुर काया सी हूँ,
तुम आत्मा से स्थायी हो।
© metaphor muse twinkle