# कान्हा
अब क्या कहूँ मै गोविंद तुमसे, मेरा सबसे हाथ छुड़ाकर रखा है ..
अब आ क्यूँ नहीं आ जाते तुम, सबसे मुह मोड़कर तुमसे बस अब उम्मीद रखा है....
तुम्हारी पूजा नहीं कर पाती ना धूप अगरबत्ती ,
लेकिन मन मेरा हरि नाम जपत जपत पावन होती
बहुत सपने लिए फिरती हूँ कि जब आओगे मेरे पास तो अपने हाथो की बनि खीर खिलाए
अपनी हाथो से सुंदर माला बनाकर तुम्हें पहनाए...
अब आ क्यूँ नहीं आ जाते तुम, सबसे मुह मोड़कर तुमसे बस अब उम्मीद रखा है....
तुम्हारी पूजा नहीं कर पाती ना धूप अगरबत्ती ,
लेकिन मन मेरा हरि नाम जपत जपत पावन होती
बहुत सपने लिए फिरती हूँ कि जब आओगे मेरे पास तो अपने हाथो की बनि खीर खिलाए
अपनी हाथो से सुंदर माला बनाकर तुम्हें पहनाए...