...

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'ख्वाब'
कोई खास रिश्ता नहीं हमारे दरमियाँ
लेकिन एक अजीब सी तकरार है

मानो किसी दूसरे जनम में मिलें हों
और एक दूसरे पर हमारा उधार है

पहचानते भी नहीं अभी और जानते भी हैं
किसी पुराने जनम का अधूरा सा प्यार है

कभी मिले नहीं मगर हमेशा साथ रहते है
मैं शामिल हूँ उसमे और वो मुझमे शुमार है

बृहस्पत को नुक्कड़ पर खड़ा मिलता हूँ मैं
उसकी गली में एक पीर की मज़ार है

खानदानी हक़ीम कल कह रहा था मुझसे
'ख्वाब' ये फितूर है या कोई खुमार है