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दर्पण में देखा मैंने, एक अजनबी चेहरा था !!!
#दर्पणप्रतिबिंब

दर्पण में देखा मैंने, एक अजनबी चेहरा था।
आंखें वही थीं, पर सपनों का सवेरा था।।१।।

मैंने पूछा उससे, "तुम कौन हो, भाई?"
हँसकर वो बोला, "मैं हूँ तेरा साया, समाया तुझमें भाई"।।२।।

जानता हसरतें मैं तेरी, तेरे ख्वाबों का हूँ मैं गवाह।
तेरे डर, तेरी उम्मीदें, सब देखा है मैंने साथिया।।३।।

क्यों छुपा रहा तू, अपने दिल की बातें?
खोल दे अपने मन को, और सुन मेरी रातें।।४।।

खुशियों का तू झरोखा है, दुखों का तू सहारा।
बस याद रख, मैं हूँ साथ, हर कदम, हर किनारा।।५।।

झुका लीं मैने आँखें, सोचा, सच कह रहा यह।
दर्पण में जो दिख रहा, वो मेरा ही प्रतिबिंब रहा यह।।६।।

धन्यवाद", कहा मैंने, "तूने मेरी आँखें खोलीं।
अब आगे बढ़ूँगा मैं, तेरे साथ, तेरी बोलीं।।७।।

अब मैं नहीं दर्पण में, एक दोस्त था मिला।
जिसने मेरे दिल को, नई राहें दिखाता रहा।।८।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma