कुछ छिपा, कुछ जाहिर...
है एक चेहरा जो वो दिखाती है सबको
और है एक हिस्सा जो वो छिपाती भी है
कह देती है यूँ तो हर बात खुल कर सबसे
पर कुछ राज़ है जिन्हें, वो दबाती भी है
खिलखिलाती है बेवजह भी हर बात पर
है एक नमी जिसे पलकों में रोकती भी है
ले लेती है हर भार मुस्कुरा कर कांधे पर
कमजोर पड़ते मन को पर समझाती भी है
हो रोज़ अंधेरी हर रात, अमावस्या सी चाहे
एक किरण को निगाहें, मगर ढूंढती भी है
हार जायेगी जिंदगी तू या हरा देगी मुझे
एक जिद सी रख, रोज़ चुनौती देती भी है
© * नैna *
और है एक हिस्सा जो वो छिपाती भी है
कह देती है यूँ तो हर बात खुल कर सबसे
पर कुछ राज़ है जिन्हें, वो दबाती भी है
खिलखिलाती है बेवजह भी हर बात पर
है एक नमी जिसे पलकों में रोकती भी है
ले लेती है हर भार मुस्कुरा कर कांधे पर
कमजोर पड़ते मन को पर समझाती भी है
हो रोज़ अंधेरी हर रात, अमावस्या सी चाहे
एक किरण को निगाहें, मगर ढूंढती भी है
हार जायेगी जिंदगी तू या हरा देगी मुझे
एक जिद सी रख, रोज़ चुनौती देती भी है
© * नैna *