...

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व्यथित मन
व्यथित मन को लेकर अपने केनवास में,
जिंदगी जीने की तमन्ना जैसे खत्म हो गई थी |
किसी चरवाहे ने डंडे से केनवास में यूँ मारा कि डंडे की कील से केनवास फट गया और एक पतली सी सूरज की तेज किरण मेरी आँखों पे पड़ी,
वो किरण जैसे जीने का सहारा बन गई हो,
नज़र मिलाने की हिम्मत नहीं थी पहले
और अब सूरज से नज़र मिला रहा था |
चरवाहे की सिसकती आवाज ने उठा दिया मुझे,
उसे देखके जैसे जीने का मकसद ही बदल गया था|
उसी डंडे की कील ने एक बकरी को लहू-लुहान कर दिया था और चरवाहे की आंख में आंसू थे |
मैंने केनवास के टुकड़े से लहू को बंद कर दिया,
उस चरवाहे की नज़र और उसकी खुशी के आंसुओं ने जैसे मुझे फिर से जिंदगी जीने का सहारा दे दिया था...







© Abhishek mishra