स्वाभिमान की ज़ंग
जीवन जीने को जो तरस रहे,
मान सम्मान को जो दर-दर भटक रहे,
घूँठ- घूँठ को जो बिलख रहे,
सबके हाथों में कलम की धार रहे , बाबा साहेब तेरा सब पर यह उपकार रहे ...
इतने तुमनें ज़ुल्म सहे,
खड़ाऊँ की भूमि पर...
मान सम्मान को जो दर-दर भटक रहे,
घूँठ- घूँठ को जो बिलख रहे,
सबके हाथों में कलम की धार रहे , बाबा साहेब तेरा सब पर यह उपकार रहे ...
इतने तुमनें ज़ुल्म सहे,
खड़ाऊँ की भूमि पर...