...

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स्वाभिमान की ज़ंग
जीवन जीने को जो तरस रहे,
मान सम्मान को जो दर-दर भटक रहे,
घूँठ- घूँठ को जो बिलख रहे,
सबके हाथों में कलम की धार रहे , बाबा साहेब तेरा सब पर यह उपकार रहे ...
इतने तुमनें ज़ुल्म सहे,
खड़ाऊँ की भूमि पर तुम पढ़ते रहे,
सबके अधिकारों के लिए लड़ते रहे,
बाबा दिला सबको अधिकार रहे,
सबके हाथों में कमल की धार रहे, बाबा साहेब तेरा सब पर यह उपकार रहे...
छुआ-छूत सब मान रहे,
घृणा के भाव तुम पर डाल रहे,
राह चलने पर सब शूल और रोड़े डाल रहे,
उन राह पर कलम की धार रहे, बाबा साहेब तेरा सब पर यह उपकार रहे...