...

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भरम
ख़ाक है पाई अंजुमन आराइयों में हमने
बेमेहर है पाई यार की याराइयों में हमने।

कभी अंजान कभी जान न पहचान सी पाई
हर घड़ी मकीनों की तमाशाइयों में हमने।

मौज ए बहार में इब्तिदा ए इश्क सा भरम
सब्र तलब रखा दिल के किनारों में हमने।

तबीब से भी रखते क्या उम्मीद अब हम
खुश्क मिज़ाज है पाया किसी की उल्फतों में हमने।


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