8 views
भरम
ख़ाक है पाई अंजुमन आराइयों में हमने
बेमेहर है पाई यार की याराइयों में हमने।
कभी अंजान कभी जान न पहचान सी पाई
हर घड़ी मकीनों की तमाशाइयों में हमने।
मौज ए बहार में इब्तिदा ए इश्क सा भरम
सब्र तलब रखा दिल के किनारों में हमने।
तबीब से भी रखते क्या उम्मीद अब हम
खुश्क मिज़ाज है पाया किसी की उल्फतों में हमने।
बेमेहर है पाई यार की याराइयों में हमने।
कभी अंजान कभी जान न पहचान सी पाई
हर घड़ी मकीनों की तमाशाइयों में हमने।
मौज ए बहार में इब्तिदा ए इश्क सा भरम
सब्र तलब रखा दिल के किनारों में हमने।
तबीब से भी रखते क्या उम्मीद अब हम
खुश्क मिज़ाज है पाया किसी की उल्फतों में हमने।
Related Stories
18 Likes
2
Comments
18 Likes
2
Comments