...

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हर बादल में ऐसी उडान ना थी
वक़्त बे-वक़्त खिलती रही
परेशानियाँ इस दिल की...

धडकने उलटती-पलटती रही,
राहत-ए-रूह रही एक हिचकी...

मंज़िले तलाशती रही मौक़े,
और गुज़रते गये रास्ते सभी...

कभी तो किनारा टकराया,
कभी मँझधार जा फँसी नदी...

मेरी पतंग भी परवाज़ चढ़े,
हर बादल में ऐसी उडान ना थी....
© kriti trip

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