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भय
काला अंधेरा और छाया सन्नाटा चारों तरफ है
पड़ती सुनाई रात्रि कीट भय कि वांसुरी आवाज है
गुंजन होती किट किट हड्डिधारी मानव के दन्त आवाज
उफ्फ ये भय क्या न करवाते है।
है बढ़ाया पग वह उस सुनसान हवेली में
जीर्ण-शीर्ण है वह और गिरते धुल दीवारो से
टप टप टप उभरते आवाज उस बढ़ते पग से
फैला जाल विषैले मकड़ी यों का कोना कोना महल के।
अचानक होता कर्कश आवाज महल में गुंजते
रुक जाता धड़कन, सांस वहीं उखड़ जाते
होता एक झटका जोरदार कंपित दिमाग पे
और तब टूटता नींद, खुद को बिस्तर पर पाते।
© harry56tuyul
पड़ती सुनाई रात्रि कीट भय कि वांसुरी आवाज है
गुंजन होती किट किट हड्डिधारी मानव के दन्त आवाज
उफ्फ ये भय क्या न करवाते है।
है बढ़ाया पग वह उस सुनसान हवेली में
जीर्ण-शीर्ण है वह और गिरते धुल दीवारो से
टप टप टप उभरते आवाज उस बढ़ते पग से
फैला जाल विषैले मकड़ी यों का कोना कोना महल के।
अचानक होता कर्कश आवाज महल में गुंजते
रुक जाता धड़कन, सांस वहीं उखड़ जाते
होता एक झटका जोरदार कंपित दिमाग पे
और तब टूटता नींद, खुद को बिस्तर पर पाते।
© harry56tuyul
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