...

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बारिश
बूंद-बूंद मत बरसो अब तुम
जीवों पर भी तरसो अब तुम
इतना भी क्या बरस रही हो
जीवन से क्या भटक रही हो

देख रही हो बरस-बरस कर
जनजीवन को तरस-तरस कर
न खाने को न पीने को है
इंस़ा भी अब मरने को है

व्याकुलता क्यों दिखती नहीं हैं
बारिश तू क्यों रुकती नहीं है
इतना भी मत बरसा कर तू
जीवों पर भी तरसा कर तू

कठोर हृदय मत रक्खा कर तू
हम पर इतना मत बरसा कर तू
-पवनसुता यादव



© Pawansuta yadav