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पहली दीक्षा
आओ सुनाऊं किस्सा मै सूफी संत बुल्ले शाह जी का।
पूरा नाम था मीर अब्दुल्ला शाह कादरी, जिनका।।

ऊंचे परिवार में पैदा हुए, पिता थे मौलवी जाने माने।
रब से मिलने की हसरत को शुरू से बुल्ले शाह जी थे मन में ठाने।।

पहुंची हुई रूह थी बस सच्चे मुर्शद(गुरु) की थी तलाश।
आओ सुनो इस से जुड़ी कहानी जो है बहुत ही खास ।।

करते हुए तलाश सच्चे मुर्शद की, उनकी तड़प खीच लाई हज़रत शाह कादरी के द्वार पर।
देखने मात्र से पेड़ से आम गिरा सकते थे, परखने लगे बगीचे में काम कर रहे हज़रत जी को पेड़ से आम गिरा कर।।

हज़रत जी ने कहा बुल्ला जी से, तुम आम चोरी करने आए हो।
तर्क देकर पूछे बुल्ला शाह जी "ना में पेड़ पर चढ़ा, ना पत्थर फैंका, तो आप मेरा नाम क्यूं लगाए हो।।

"एक तो चोर ऊपर से चतुर" जब हज़रत जी ने कसा तंज़।
यही सच्चे मुर्शद है बुल्ले शाह जी गए थे समझ।।

पांव पकड़ बोले मैं रब्ब को चाहता हूं पाना।
सरल शब्दों में सार दे गए हज़रत जी, बोले "बस पौधा उखाड़ इधर से उधर ही तो है लगाना।।"
अर्थात संसार से हटा कर मन अपना उस रब की तरफ ही तो है लगाना।।

इन सरल शब्दों में दे दी थी बहुत बड़ी शिक्षा।
यही थी बुल्ले शाह जी की उनके मुर्शद से पहली दीक्षा।।




© Vasudha Uttam